गुरुवार, 17 जून 2010

कविता :बंदरिया नाच दिखाती

बंदरिया नाच दिखाती

एक बंदरिया नाच दिखावे ।
बन्दर खड़े-खड़े पछतावे ॥
मदारी रोज पैसा कमावे ।
बंदरिया बन्दर को चिढावे ॥
एक दिन बन्दर गुस्सा हो बैठा ।
बंदरिया बोले ले खाले भांटा ॥
बन्दर चिढ़कर गुस्से में बोला ।
चुप हो जा वरना जाग जायेगा मेरा शोला ॥
फिर भागेगी किसी के बरात में ।
तू खायेगी वहां पर छोला॥
मैं हो जाउंगा वहां पर भोला।
तू खाएगी तो हो जायेगा बवाल।।
मै कर दूगा जा कर बारात में धमाल।
लोग कहेगे क्या है इसका कमाल।।
एक बंदरिया नाच दिखावे।
बन्दर खड़े खड़े पछतावे।।
लेखक : मुकेश कुमार
कक्षा
अपना घर