अब तो घर से निकलेगा जो भी ।
ठण्ड से सिकुड़ जाएगा वो भी ॥
पड़ रही है ये कितनी सर्दी ।
जैसे पहन कर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥
जब निकलती है ये धूप सुहानी ।
हो जाती है तब सबकी मनमानी ॥
सूर्य की गर्मी से जब गर्माहट पाते ।
तब कुछ कर हम है पाते ॥
रात में रजाई में घुसकर ।
सो जाते हैं उसमें छुपकर ॥
पड़ रही है ये कड़ाके की सर्दी ।
जैसे पहनकर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥
लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
5 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया..धरमेन्द्र! शाबास!
भाई इस भीषण गर्मी में आपको सर्दी की कविता कैसे सूझी ,
कविता अच्छी है
क्या सर्दी पड रही वाह धमैन्द्र जी वाह
सर्दी सदी क्या करते हो सर्दी किसी को खाती है
ओढ रजाई सो जाने से सर्दी दुर भाग जाती है
gunesh rathore lunawa
क्या सर्दी पड रही वाह धमैन्द्र जी वाह
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