घटती जाती पेड़ पौधों की संख्या भाई।
बढती सूरज का तपन भाई,
बढती गर्मी होती दिक्कत सारी।
चलती लू जलती त्वचा हमारी,
होती बीमारी न्यारी।
जिसका इलाज न होता जल्दी भाई,
सोते रहते घर में भाई।
लोग देखे भाई करते रहते छि छि,
क्या हो गयी बीमारी इसको।
माता कहती मत पूछो भाई,
तुम घूमना मत धूप में भाई।
नहीं जल जाएगी त्वचा तुम्हारी,
हो जाएगी बीमारी यही भाई।
इसलिए कहते है भाई,
पेड़ पौधे मिलकर लगायो सब भाई।
वर्षा हो इतनी प्यारी,
जिससे हो हरयाली न्यारी।
सब घर में हो खुशिया प्यारी प्यारी,
पेड़ पौधे मिलकर लगायो सब भाई।
लेखक : अशोक कुमार
कक्षा : ७
अपना घर
कक्षा : ७
अपना घर
5 टिप्पणियां:
अच्छी कविता। हालांकि कहीं-कहीं फ्लो बनने में दिक्कत हुई। लेकिन, इतनी कम में इतना अच्छा प्रयास सार्थक रहा।
http://udbhavna.blogspot.com/
शाबाश, बहुत अच्छा संदेश दिया.
सब घर में हो खुशिया प्यारी प्यारी,
पेड़ पौधे मिलकर लगायो सब भाई।
बढिया संदेश दिया है आपने !!
"बेहद ही प्यारी सी सुन्दर सी और अच्छा सा संदेश देती ये कविता..."
keep it up
आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा मैंने यहाँ भी की है!
--
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/06/1.html
एक टिप्पणी भेजें