बना बना कर तमाम फैक्टरिया,
क्यों कर रहे हो जिंदगी तबाह।
इस धरती को कर रहे हो ख़राब,
इसके बारे में तुम्हे पता है क्या ?
इन फैक्टरियों से निकलता धुआं,
पर्यावरण को असंतुलित बना रहा।
जल जमीन वायु प्रदूषित हो रहा,
इसके बारे में तुम्हे पता है क्या ?
साँस लेने में हो रही है घुटन सी,
मन बेचैन और आँख में जलन सी।
बड़ी नदिया भी दिख रही नाला सी,
इसके बारे में तुम्हे पता है क्या ?
इन्सान ने ये कौन सा रोग पाला,
जिन्दगी को मौत के मुहं में डाला।
हरे भरे जंगल को बंजर बना डाला,
इसके बारे में तुम्हे पता है क्या?
बना बना कर तमाम फैक्टरिया,
क्यों कर रहे हो जिंदगी तबाह।
लेखक: सागर कुमार, कक्षा ६, अपना घर
9 टिप्पणियां:
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
apna ghar ke sabhi saathiyon ko badhaai .unka blog balsajag sabhi logon dwara saraha ja raha hai . kavitaon me unka chintan jhalakta hai
very nice poem ............
keep writing........
समीर अंकल का फोर्मुला अपनाओ " पेड़ लगाओ , धरा बचाओ "
nice
sagar, es kavia ke sandesh ko dur dur tak logo ko batana hoga.thanks a lot
बहुत अच्छा संदेश दिया है. देखो, माधव को, उसे भी याद है. प्यारा बच्चा!!
प्यारे बच्चों , आपके समीर अंकल जी से आपके इस ब्लॉग का पता चला, आपकी प्यारी प्यारी कविताएँ भी पढ़ी.....और आप सभी बच्चों का ये प्रयास मन को छु गया......यूँही लिखते रहो, और जिन्दगी में आगे बढ़ते रहो. भगवान् आप सभी को आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में आपना आशीर्वाद जरुर देंगे.
love ya
बहुत सुंदर लिखते हो
धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें