रविवार, 4 अप्रैल 2010

आम
आम रसीले देखकर ,
आया मुंह में मेरे पानी.....
चढ़ कर पेंड पर ,
मैंने उसको तोडा.....
आम लागे थे चार,
आम मैंने खाया यार.....
आम रसीले खा कर के,
मुझको आई मजा.....
चदा था पेड़ पर मै,
डाल छुली गिरा मै नीचे....
आम खाने की मिली सजा ....
लेखक सोनू कक्षा अपना घर कानपुर

2 टिप्‍पणियां:

सीमा सचदेव ने कहा…

सोनु आपका प्रयास अच्छा है , आम खाओ गुठलियां मत गिनो मेरा मतलब बस आम का स्वाद महसूस करो , चोट की पीडा नहीं । शुभकामनाएं

PD ने कहा…

अरे वाह.. बहुत सुन्दर कविता है ये तो..
हम तो चले आम खाने.. :)