रविवार, 11 अप्रैल 2010

कविता :सुनो पर्यावरण की आवाजें

सुनो पर्यावरण की आवाजें

पर्यावरण और कल कल झरनों की आवाज
महसूस करो दोस्तो गंगा-यमुना की आवाज
एक समय ऐसा भी था
गंगा-यमुना समुन्दर जैसी थी
गंगा-यमुना के पानी से
क्यों कर रहे हैं कोका-कोला तैयार
क्या तुम्हें याद हैं एक बात
पड़ गया था पानी का आकाल
उस समय येसा था
गंगा-यमुना में पानी कम था
गंगा-यमुना को है बचाना
वातावरण को है सुन्दर बनाना


लेखक :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छा संदेश दिया है.

kamlakar mishra smriti sansthan india ने कहा…

sagar, aapki kavita ko padh kar sikhne ko mila hai.....thanks a lot

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

vaaha saagar ne to bahut badhiya sandesh diya hai is bal heet ke madhyam se----.

seema gupta ने कहा…

गंगा-यमुना को है बचाना
वातावरण को है सुन्दर बनाना
" बहुत अच्छा संदेश देती ये कविता बहुत सुन्दर"
love ya