लोगों की वाणी अनेक विचार वाली,
कभी अच्छी तो कभी बुरी वाली...
घर में बैठा था सांप,
काले -सफेद थे उसके दाग....
लोगों ने जब उसको देखा,
घर से निकाल फेंका...
जब घर के बाहर लोगों ने देखा,
झट से उनके मुंह से निकला...
महीना है सावन का,
भोले शंकर दानी का....
सर्प को मारो मत,
उसको छेड़ों मत...
सांप तब तक ईट में चला गया,
लोगों को चिंतित छोड़ गया...
सर्प कुछ देर में बाहर निकला,
लोगों के मुंह से फ़िर वाणी निकला...
छोटे - छोटे बच्चे घर में,
निकलेंगे जब अंधरे में....
ये बच्चों को काटेगा,
मौत सभी को बाँटेगा...
झट से इसको खत्म करो,
आग लगा के भस्म करो....
अच्छी लगी कभी बुरी लगी,
लोगो की वाणी कैसी लगी.......
लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर
3 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी कविता.
अच्छी लगी !!
सच दुविधा है ...लेकिन जियो और जीने दो
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