"कवि की छवि"
एक था बहुत बड़ा कवि ।
जब हमने देखी उसकी छवि ।।
उड़ गए होश हमारे ,
गश खाकर हम गिरे,
देख के हमको दौड़े लोग बेचारे ।
मै तो था बेहोश ,
पानी ही पड़ते हमको आया होश ।।
कवि ने पूछा अरे ओ भईया ,
हमने बोला क्या रे कविया ?
सुनकर हमारी ये बतियाँ ,
कवि के गुस्से से लाल हो गई अँखियाँ ।
काले बादलो की भाँती मेरे पास में छाया ,
उसका यह रोब हमरे मन को भाया ।
हमने कहा अरे ओ भईया ,
सुन लो तनि हमरी ये बतिया ।
हमने सुना था कि तुम हो शांत रस के कवि ,
तो शान्ति के जैसी होगी तुम्हारी छवि ।
पर तुम तो निकले रौंद्र रस के कवि ,
तुमने बदल दी हमारी छवि ।।
एक था बहुत बड़ा कवि ।
जब हमने देखी उसकी छवि ।।
उड़ गए होश हमारे ,
गश खाकर हम गिरे,
देख के हमको दौड़े लोग बेचारे ।
मै तो था बेहोश ,
पानी ही पड़ते हमको आया होश ।।
कवि ने पूछा अरे ओ भईया ,
हमने बोला क्या रे कविया ?
सुनकर हमारी ये बतियाँ ,
कवि के गुस्से से लाल हो गई अँखियाँ ।
काले बादलो की भाँती मेरे पास में छाया ,
उसका यह रोब हमरे मन को भाया ।
हमने कहा अरे ओ भईया ,
सुन लो तनि हमरी ये बतिया ।
हमने सुना था कि तुम हो शांत रस के कवि ,
तो शान्ति के जैसी होगी तुम्हारी छवि ।
पर तुम तो निकले रौंद्र रस के कवि ,
तुमने बदल दी हमारी छवि ।।
नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपना घर ,कानपुर
2 टिप्पणियां:
अहा ! बहुत अच्छी ताजगी भरी कविता ।
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई देर से ही सही प्रशासन जागा :बधाई हो बार एसोसिएशन कैराना .जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है
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