जनता
भूख,बेरोजगारी और गरीबी,
झेल रही है जनता.....
फिर भी चुपचाप जिन्दगी का,
खेल,खेल रही है जनता.....
खुश हैं लूटने वाले,
और सो रही है जनता.....
पर वह दिन दूर नहीं,
जब-सब कुछ बदल जाएगा.....
तब एक ही नारा बोला जाएगा,
कमाने वाला खायेगा....
लूटने वाला ललचाएगा,
लेखक : हंसराज कुमार
कक्षा : 8
अपना घर
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