गंगा के उस पार चलें
चलो-चलो अब सैर करें,
गंगा के उस पार चलें....
गंगा के उस पार जायेगें,
मौज मस्ती करके आयेगें.....
हवा चलेगी ठंडी-ठंडी,
मौसम होगा खूब सुहाना....
चलो-चलो अब सैर करें,
गंगा के उस पार चलें....
पानी होगा कितना निर्मल,
ठंडा और होगा शीतल....
चलो-चलो अब सैर करें,
गंगा के उस पार चलें...
लेखक : मुकेश कुमार
कक्षा : 10
अपना घर
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कविता... मुझे भी गंगा के उस पार जाकर बहुत अच्छा लगता है...
वाह! गंगा तीरे इतना सुहाना होता है और उस पार जा कर आना तो आनन्द ही आनन्द का विषय है। अच्छा उकेरा कविता में!
बहुत सुन्दर कविता...
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