" ये जिंदगी फिर क्या जिंदगी है "
मैंने एक देश में देखा ऐसा,
जहाँ कानून को कर रहे थे
लोग ऐसे को तैसा |
हर कानून को तोड़ रहे थे ,
झूठ को सच साबित कर रहे थे |
जात - पात के नाम पर लड़ रहे थे,
एक दूसरे को कम नहीं समझते थे |
हर जुल्म -अत्याचार कर रहे थे,
अपने देख को ही बर्बाद,
करने पर तुले रहते है |
अपने जिंदगी को जीने का,
कोई लक्ष्य नहीं होता है |
बस अपने आप को न समझ के,
बराबर जिंदगी जिए जा रहे थे |
ये जिंदगी फिर क्या जिंदगी है,
जो बेमतलब की जिंदगी है |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह हैं विक्रम जो की बहुत ही अच्छे कविकार हैं और कविताएं भी बहुत ही अच्छे लिखते हैं | विक्रम बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं और अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर हैं | विक्रम को पढ़ाई करना बहुत अच्छा लगता है |
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