" माँ का प्यार "
मन करता है मैं छोटा बन जाऊँ,
माँ का प्यार दोबारा पाऊँ |
उंगली पकड़कर चलना सिखाती,
नया संसार की बात बताती |
क ,ख ,ग पढ़ना सिखाती,
एक से बढ़कर सपने दिखती |
इस प्यार की प्यासी सारी दुनिया,
माँ ने दुनियाँ को सहराया |
वो छोटी सी भी मुस्कराहट तेरी,
हर माँ को ख़ुशी रौशनी देती |
कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर
कवि परीचय : यह हैं सार्थक कुमार जो की बिहार राज्य से अपनाघर पढ़ने के लिए ए हुआ है | दौड़ लगाना बहुत पसंद हैं | पड़े में बहुत अच्छे हैं |
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर विचार प्रकट किए हैं ।
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