" पृथ्वी निराली "
सुंदर सा संसार हमारा,
जिस पर बसा है दुनिया सारा |
ढूंढ आए और जग सारा,
कहीं नहीं मिला पृथ्वी जैसा सहारा |
पृथ्वी बानी खुली आसमानों में,
तारे टिमटिमाएँ रत में |
दिन में खो जाता है तारा,
फिर न दिखाई देता तारा |
क्योंकि पृथ्वी है सुंदर निराला | |
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर
कवि परिचय : यह हैं नितीश मांझी ये बिहार राज्य से यहाँ पढ़ने के लिए आये हैं | विज्ञान और अंतरिक्ष के बारे में पढ़ने की बहुत रूचि रखते है | कवितायेँ भी अधिकतर अंतरिक्ष पर लिखते हैं | बहुत ही शांत स्वभाव के रहने वाले नितीश के माता - पिता मजदूरी का कार्य करते हैं | क्रिकेट और फुटबॉल खेलना पसंद करते हैं |
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