" जब सुबह मैं जागा "
जब मैं सुबह सुबह -जागा,
बिस्तर छोड़कर व्यायाम को भागा |
तब बज रहे थे सुबह के चार,,
बह रही थी ठंडी -ठंडी हवा,
चिड़िया उड़ रहीं थी पंख पसार |
मानों प्रकृति कुछ रही हो,
क्या घूमना चाहते हैं संसार |
मैं तो था बिलकुल तैयार,
लेकिन जब सपना टूटा तो |
सब कुछ हो गया बेकार |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर
कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार जो की बिहार जिला के एक मजदूर परिवार से यहाँ पढ़ने के लिए आएं हैं ताकि वह भी दिखा दे की केवल जिसके पास खूब पैसा हो वही केवल पढ़ाई कर सकता है | खेल में भी बहुत अच्छे हैं | कवितायेँ लिखने के साथ- साथ डांस करना भी बेहद पसंद है |
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