क्या इसके सिवा कोई काम धंधा नहीं
भाई बहनों नहीं के नहीं , बाप बेटी का रहा नहीं ।
हवस के इस दौर में , क्या- क्या नहीं ।।
दिल, जिगर , जज्बात सब बिक चुका है ।
बचाना नहीं इंशा नियत खत्म , हैवान जाग गया है ।।
सुरछित नहीं वो , जिसकी जेब मे पैसा नहीं है ।।
कितनी दर्दनाक मौत हुई उन मासूमों की ।
फैसला जिसका आजतक हुवा नही।।
जानवर से बत्तर जिंदगी जीते हो ।
इंसानियत की राह पर क्यो चलते नहीं ।
क्यों इस राह पर चल पड़ते है लोग ?
क्या इसके सिवा कोई काम - धंधा नहीं ?
dharmendra kumar
class :9
apna ghar ,kaanpur
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें