महिला की महिमा
तुझे देखते ही ।
तेरे पिता ने शीश झुकाया ।।
तेरी माँ को गाली देकर ।
स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
जब तू एक बच्ची थी ।
अपने माँ के गर्भ से जन्मी थी ।।
घर को दौड़ा आया ।।
पूछने पर ,
मुरझाया सा जवाब पाया ।
माँ को गाली देकर ,
बेटा क्यों नहीं जन्माया ?
बेटे की महिमा ,
बड़ी ही निराली ,
हर महिला इसके चक्कर में ,
होती शोषण का शिकार ,
महिला की यह महिमा है ,
जिससे पुरुष और महिला है ।
महिला की महिमा को पहचानो ।।
फिर शोषण करने की ठानो ,
स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
तुझे देखते ही ।
तेरे पिता ने शीश झुकाया ।।
तेरी माँ को गाली देकर ।
स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
जब तू एक बच्ची थी ।
अपने माँ के गर्भ से जन्मी थी ।।
घर को दौड़ा आया ।।
पूछने पर ,
मुरझाया सा जवाब पाया ।
माँ को गाली देकर ,
बेटा क्यों नहीं जन्माया ?
बेटे की महिमा ,
बड़ी ही निराली ,
हर महिला इसके चक्कर में ,
होती शोषण का शिकार ,
महिला की यह महिमा है ,
जिससे पुरुष और महिला है ।
महिला की महिमा को पहचानो ।।
फिर शोषण करने की ठानो ,
स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
नाम : अशोक कुमार
कक्षा : 10
अपना घर , कानपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें