बुधवार, 2 मई 2012

कविता:-मंहगाई

मंहगाई 
मंहगाई का भईया ये जमाना....
तो क्या छोड़ दें खाना खाना,
लेकिन अब ऐसा ही हो रहा....
मानव मंहगाई का बोझा ढो रहा,
वायरस की तरह फैलती है, मंहगाई....
इसी कारण भारत में गरीबी आई,
नेता तो हो गए हैं, भ्रष्टाचारी....
परेशान हैं, इससे सब नर-नारी, 
गरीबों का बचा था, सहारा आलू.... 
उसे भी खा मोटे हो गये लालू,
जनसंख्या का भी इस पर पड़ा प्रभाव....
रेसे से कैसे चलेगी गरीबों की नाव,
नाम :धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :9 
अपना घर  
 

कोई टिप्पणी नहीं: