बुधवार, 26 मई 2010

कविता :हवा चली

हवा चली

हवा चली भाई हवा चली ।
दूर-दूर तक हवा चली ॥
ठंडी गर्म है हवा चली ।
हवा चली भाई हवा चली ॥
गर्मी में तो आम गिरेगें ।
आमों के हम स्वाद चाखेगें ॥
आमों के हम पेड़ लगायेंगे ।
हवा चली भाई हवा चली ॥

लेखक :लवकुश कुमार
कक्षा :
अपना घर

7 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

हवा चली भाई हवा चली ॥

" इतनी गर्मी में प्यारी सी कविता बहुत सुन्दर.."
god bless you

seema gupta ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्यारी कविता...हवा देती हुई सी.

Ra ने कहा…

सुन्दर, प्यारी, भोली ,और शीतलता से युक्त कविता

SANJEEV RANA ने कहा…

सुंदर

माधव( Madhav) ने कहा…

कौन सी हवा चली , पछुआ या पुरवा ?
मै तो पछुआ चलाने की दुआ करता हूँ

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बड़ी प्यारी हवा...मजा आ गया .

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