शुक्रवार, 28 मई 2010

कविता आइसर्कीम

आइसर्कीम
आइसर्कीम हमें ला दो ,
दो रूपया हमें दे दो.....
दो रूपया मै ले जाउगा,
बर्फ की सिली लउगा....
बर्फ मै बनाऊगा,
बाजार में बेचने जाऊगा.....
पैसा कामऊगा,
बर्फ की सिल्ली लाऊगा.....
सबको आइसर्कीम खिलऊगा ,
शरीर
में ताजगी लाऊगा...
आइसर्कीम मै खाऊगा.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा
अपना घर कानपुर

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

जरुर खाना!! :)