रेल चली भाई रेल चली ।
दस दस डिब्बे साथ में ले चली ॥
रेल के डिब्बे बड़े ही भारी ।
उस पर बैठी न जाने कितनी सवारी ॥
रेल का लगता बड़ा ही भाड़ा ।
लोग फैलाते न जाने कितना कूड़ा॥
रेल है भारत की सम्पत्ती ।
जब चलती है तो धरती- हिलती ॥
किसी के रोके से न रुकती ।
ऐसा लगता मानो आ गई कोई विपत्ती ॥
रेल किसी को नहीं जानती ।
जो भी आगे आता ,उस पर चढ़ जाती ॥
लेखक आशीष कुमार, कक्षा ७, apna ghar
1 टिप्पणी:
अच्छी कोशिश !!
एक टिप्पणी भेजें