बुधवार, 25 नवंबर 2009

कविता: सर्दी का अमरुद्ध

सर्दी का अमरुद्ध

अमरुद्ध लगे हैं कितने प्यारे,
लगता है मुँह में जाए सारे...
पर डर लगता है सर्दी का,
डाक्टर लेगा पैसा फर्जी का...
पैसा नहीं लगाना अब फर्जी का,
अमरुद्ध नही खाना अब सर्दी का....


लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ६, अपना घर , १६/११/2009

2 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

bachpan me itni samjhdaari achhi nai...

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

अमरूद दिन में खाइये भाई----डाक्टर को पैसा नहीं देना पड़ेगा।
हेमन्त कुमार