गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

कविता:- मास्टर जी


मास्टर जी
मास्टर जी कक्षा में आए
साथ में एक डंडा लाये
डंडा था पतला
मास्टर जी ने एक प्रश्न दिया
बच्चो ने प्रश्न नही किया
क्योकि उत्तर था लंबा
मास्टर जी ने डंडा मारा राम को
डंडा गया टूट
सरे बच्चे हो गए खुश
मास्टर जी को गुस्सा आया
खूब मोटा डंडा लाया
तब तक समय हो गया पूरा
मास्टर जी कक्षा से गए
सारे बच्चे खुश हो गए
मास्टर जी कक्षा में आए
चुप हो गए बच्चे सारे
अब तो खत्म हुई कहानी
गए सबके नाना नानी
अशोक कुमार
अपना घर, कक्षा 6



6 टिप्‍पणियां:

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सबसे पहले तो आपको इस महान काम के लिए बधाई। बच्‍चों के लिए यह जगह देखकर मुझे अपनी ‍चकमक की याद आ गई। जी हां मैंने 17 साल चकमक के संपादन में लगाए हैं। वहां हम बच्‍चों को इसी तरह मेरा पन्‍ना में छापते थे। बच्‍चों की रचनाओं को चुनते समय थोड़ा उनके संपादन भी पर ध्‍यान दें। संपादन इस तरह हो कि बच्‍चे उसे देखकर लिखना सीखें भी।

यशवंत सिंह yashwant singh ने कहा…

भाई महेश जी
मजा आ गया।
आपका ब्लाग देखकर न सिर्फ इसको भड़ास के कोने में दर्ज कराया बल्कि आपके ब्लाग पर एक पोस्ट भी लिख डाली ताकि बुरे बन चुके मुझ जैसे गरिष्ठ-वरिष्ठ लोग थोड़े बच्चे बनकर अच्छे भी बन जाएं :)

यशवंत
http://bhadas.blogspot.com

संगीता पुरी ने कहा…

बच्‍चें के लिए अच्‍छी कविताएं लिखी हैं।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

पुराने दिन याद क्‍यों दिला दिए जब हमारे लिए भी बहुत ही मोटा डंडा कई बार तो हमसे मंगवाया जाता और हम पर तोडा जाता था अब दर्द हो रहा

अच्‍छा लिखा है आपने बहुत बहुत बधाई मास्‍टर अशोक जी आपको खूब पढो बहुत ही आगे बढो

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

महेश जी

डंडे की मार

और

डंडा गिल्‍ली का

जमाना अब कहां ?

मन का प्‍यारा

अफसाना

वो तराना

अब कहां ?

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अब जरूर

पड़ेगी डंडे की मार

एक तो नाम लिया

मास्‍टर जी का

वो भी गलत
भूलने की अब

लग गई है लत।