मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

कविता : " कर्ण "

 "  कर्ण हूँ मैं   " 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्ध के मैदान में वीरो को भी पछाड़ दिया। 
थे वो एक महापुरष , 
न नसीब हो पाया माँ का प्यार।  
क्रोध भयंकर आता था लेकिन किया उनको नाकार 
युद्व के लिए हमेशा रहते थे वो त्यार। 
लोगो ने निचा कहा  और अपमान किया,
परशुराम ने दिया कर्ण को विद्द्या ,
महा युद्धा  कर्ण हमेशा से किया प्रतिज्ञा। 
और कोई नहीं वह परशुराम का शिष्य दानवीर कर्ण हुआ। 
उसभरे समाज में कर्ण ने अर्जुन को भी ललकारा दिया। 
फिर कर्ण का  देख यह रूप कुंती भी नाकार किया। 
था गुरु परशुराम मेरा नाम दानवीर कर्ण हुआ। 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्व के मैदान में विरो को पछाड़ दिया। 
कवि : निरु कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर।