रविवार, 4 जून 2023

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
 तर -तर पसीना चू रहा है | 
पूरा बदन पानी से भीग रहा है, 
गर्मी में हल बेहाल है | 
मौसम में भी थोड़ा उबाल है, 
सूरज का अपना भौकाल है | 
दोपहर में निकलना खराब है, 
पूरा भारत गर्मी से परेशान है| 
ये गर्मी प्रदूषण की पहचान है, 
तर -तर पसीना चू रहा है |  
पूरा बदन पानी से भीग रहा है, 
कवि :कुलदीप कुमार ,कक्षा :9th 
अपन घर 

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