" नाख़ुश है पत्ते "
क्यों मायूश दिखते ये पत्ते,
क्यों इस ताप से नाख़ुश है पत्ते |
गिरते , गिड़गिड़ाते और मुरझा जाते,
समय होते ही जमीं पर आ जाते |
क्या यूँ ही झरकर गिरना था,
या फिर हरियाली की सीढ़िया चढ़ना था |
क्यों सहमें से लगते है पत्ते,
क्यों एक बार छूने से डरते है पत्ते |
ये पत्तों की कहानी है,
यही उनकी किस्मत और कहानी हैं |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
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