शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कविता : नाख़ुश है पत्ते

" नाख़ुश है पत्ते "
 
क्यों मायूश  दिखते ये पत्ते,
क्यों इस ताप से नाख़ुश है पत्ते | 
गिरते , गिड़गिड़ाते और मुरझा जाते,
समय होते ही जमीं पर आ जाते | 
क्या यूँ ही झरकर गिरना था,
या फिर हरियाली की सीढ़िया चढ़ना था | 
क्यों सहमें से लगते है पत्ते,
क्यों एक बार छूने से डरते है पत्ते | 
ये पत्तों की कहानी है,
यही उनकी किस्मत और कहानी हैं | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं: