" गर्मी "
यह उमस से भरी गर्मी ,
जरा सा भी नहीं कोई नरमी |
पानी के लिए प्यासी यह धरती,
एक बरसात के लिए तरसती |
न जाने लिस बात की उदासी,
पानी होते हुए भी खूब प्यासी |
पसीने की बूंदें भी बताती हैं,
कूलर , पंखें भी सताती हैं |
फिर भी मन को बैठाकर
कुछ करने की सोचते हैं
कूलर , पंखे जितना भी हो
गर्मी हम चुपचाप सह्तें हैं |
नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपनाघर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | इस कविता का शीर्षक है " महान हिंदी " जिसमें की हिंदी भाषा को दर्शाया है | हिंदी हमारी मात्रा भाषा है और पूरे भारतवर्ष में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मानते हैं इस अवसर पर प्रांजुल ने यह कविता लिखी है |
1 टिप्पणी:
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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