" खिलौना "
यह खिलौना है मेले का,
मन करता है लेने का |
भीड़ - भाड़ लोगों के बीच में,
धक्का मुक्के और दुकान के सटीक में |
रंग बिरंगे खिलौने मन मोह लेता है,
पर क्या करूँ कोई पैसा नहीं देता |
तमाम विनती के बाद पैसे पता हूँ,
इन्ही पैसों से खिलौने को लेता हूँ |
यह खिलौना है मेले का,
मन नहीं करता किसी को देना का
कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपनाघर
कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के निवासी है | वर्तमान समय में "अपना घर" संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | अखिलेश पढ़ाई में बहुत अच्छा हैं | कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | इस कविता में उन्होंने एक खिलौने के बारे में बताया है |
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