" हिंदी दिवस गर्व का दिन "
एक बार फिर गर्व का दिन आया
पर कैसे मनाएँ हिंदी के बिन
जो अपना सम्मान है,
जो भारतवासियों की जान है |
लब्ज़ों पर यह सजती है,
पंक्तियों में यह जब अलग सा रस भरती है |
अपना महत्व बताने में,
ज़माने को सांस्कृतिक सिखाने में |
कभी पीछे नहीं हठती है,
रामायण।, महाभारत और गीता
सब इसी की उन्हें भरती है |
गली -गली जाके , हिमालय की छोटी में समाके,
बस हिंदी यह कहती है |
अमेरिका चीन या पुर्तगाल,
गगन ,सागर या हो पाताल |
या हो अंतरिक्ष में फैला अपना जाल,
अब हर कण में जलाएँगें अपनी मशाल |
हम और हमारे सपने हैं रंगीन,
एक बार फिर गर्व का दिन,
पर मनाएँ कैसे हिंदी के बिन | |
नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह हैं देवराज जिन्होंने यह कविता लिखी है | देवराज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | देवराज एक केमिकल इंजीनियर बनना चाहते हैं इस उपलब्धि को पाने के लिए वः बहुत ही मेहनत करता है | देवराज एक जिज्ञासु लड़का है जिसे हर पल कुछ जानने की ललक रहती है |
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