" एक जहाज है कुछ ऐसा "
एक जहाज है कुछ ऐसा,
जिसपे सब कोई है बसा |
पेड़ - पौधे , झील - नदियाँ,
सब थे इसके सवारी |
जब इस पर मनुष्य सवार हुए,
बदल गया चल - चलन |
संभाला फिर भी न संभला,
अब कौन बचाएगा हमें बला |
न जाने अब कहाँ रुकेगी,
अब न बचा कोई चालक इसका |
नाम : नितीश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें