रविवार, 25 जून 2017

कविता :मजबूरी

"मजबूरी " 
दलितों को जिंदगी जीना है मजबूरी,
समाज उनके लिए क्या कर रही 
यह बात पता नहीं किसी को पूरी |  
आर्थिक संकटों की वजह से, 
आ रही बड़ी -बड़ी रुकावटें |  
जिससे जिंदगी के हर राह पर,
खेल  रही मौत की आहट ,
जिंदगी से लड़ लड़कर क्या है जीना,
यह बहादुरी की बात नहीं|  
अपने अधिकार को लड़कर लेना,
शाबाशी की ताज तेरे सर पर सही | 
नाम : विक्रम ,कक्षा : 7th ,अपनाघर  

कवि  परिचय : इनका नाम विक्रम है | ये कविताओं को नरम हाथों से लिखकर उसमें जान फूक देते है | इनको रेस करना बहुत  पसंद है | शांत स्वभाव के विक्रम कुमार हमेशा अपने चेहरे में ख़ुशी रखना पसंद करते है | हमेशा नई  जानकारी को पाने की कोशिश करते रहते है |  इनको एक्टिंग करना पसंद है | 


1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-06-2017) को
"कोविन्द है...गोविन्द नहीं" (चर्चा अंक-2650)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक