शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

कविता: बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून

इस धरती पर है पानी की मारामार
तभी तो लोग करते पानी का व्यापार
क्या है ये गन्दा कोका कोला।
दिखने में लगता है काला-काला
गरीबो को लूटने वाला।
ये है लोगो की मौत का प्याला
फिर भी लोग इसी को पीते।
मना करो तो सीना तान के अड़ जाते
कहते मेरा पैसा हम कुछ भी पीये।
जीना हमें है हम कैसे भी जिए.. ?
पानी है धरतीवासियों का जीवन।
लोग सोचते है रूपए ही है जीवन
भला पानी हो इस धरती पर।
रुपया ही रुपया हो सबके घर
किसी नहीं ये सोचा होगा।
की बिन पानी तब क्या होगा
बिन पानी उगता अन्न बनता भोजन
तब असंभव हो जायेगा जीना सबका जीवन
पानी है तो ये धरती है जीवन सबको देती है
बिन पानी के रहने वालो की संख्या घटती है
अप्रैल, जुलाई, सितम्बर हो चाहे दिसंबर और जून
क्या होगा इनका मतलब जब बिन पानी सब सून


आशीष कुमार, कक्षा , अपना घर

5 टिप्‍पणियां:

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

jeevan jitna jeena hai
paani par hi jeena hai,
chaahe manav ho ya pashu
paani bin nahi jeevan hai
chalo eak abhiyan chalyen
bund bund paani bachayen

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

कितनी सही बात बताती कविता .....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आशीषकुमार की बालकविता बहुत सुन्दर रही!
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प्यार भरा आशीर्वाद!
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आपको पेस्ट की चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/12/30.html

vallabh ने कहा…

ashish bhai... pani ki hi to ab ladai hai....

chlo aaj se hi pani ko bachayen...
SAVE WATER : SAVE LIFE .....Vallabh

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत सुन्दर.बधाई!