बचपन में माँ से लड़ना झगड़ना ।
उसके ही हाथों से रोटी फिर खाना ॥
उसके साथ ही चलना और घूमना ।
गोदी में चढ़कर उसके मचलना ॥
पापा से झट से पैसे ले लेना ।
पैसे से टाफी और इमली खाना ॥
चिढ़ना-चिढ़ाना रोना-रुलाना ।
लुकना-छिपना हँसना-हँसाना ॥
माँ की गोदी था प्यारा सा पलना ।
पकड़े जो कोई तो धोती में छिपना ॥
ऐसा था प्यारा सा बचपन का रंग ।
गुजरा था जो मेरे माँ बाप के संग ॥
अशोक कुमार , कक्षा ८, अपना घर
5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर ....
ashok beta! mera bachpan yaad dila diya tumne...
कित्ती प्यारी कविता...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस
बहुत सुंदर.बधाई !
idhar kai din se baal sajag ki tem ne koi kavita nahi likhi, exams chal rahe hain kya?
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