साबुन की हैं बात निराली ,
कोई होती हैं काली तो कोई रंगीली ....
बड़े -बड़े लोग साबुन को खूब लगते हैं,
शरीर को साफ करते हैं....
बहुत लोग एसे हैं जो साबुन,
से कोसो दूर रहते हैं....
साबुन का हैं दूसरा रूप,
आम लोग जिसको कहते हैं मिट्टी....
इसे मिटते नहीं कहना भाई,
ये गरीबो के लिए हैं....
अमिरित के सामान भाई .....
लेखक सागर कुमार कक्षा ६ अपना घर कानपुर
2 टिप्पणियां:
साबुन और मिटटी दोनों की बात निराली...सागर ने तो बहुत सुन्दर कविता लिखी..बधाई.
___________________
'पाखी की दुनिया' में नेवी शिप आईएनएस राणा पर एक दिन
बढ़िया
एक टिप्पणी भेजें