सोमवार, 7 जून 2021

कविता : "देखा मैंने हजारो जिंदगी "

"देखा मैंने हजारो जिंदगी "

अब तक क्या देखा | 

देखा मैंने हजारो जिंदगी,

देखा मैने हजारो अज़नबी | 

देखा मैंने हसती जिंदगी ,

देखा मैंने खुशनसीब जिंदगी| 

देखा मैंने वेव्स और छोटी से छोटी जिंदगी,

और सबकी कहानी दो | 

जगहों पर ख़त्म होतीं है ,

एक ढीक उस तरह | 

जिस प्रकार उगे सूरज हो,

बादल छेक लेती हैं | 

और खाली हाथ लौटने पर,

बेवसकर देती है | 

दूसरा हसीन होतीं है,

जिस प्रकार चंद्रमा आकाश | 

में हमेशा बनी रती रहती है ,

और उगे सूरज को जाने का इतजार करती है |

 और अंधरे में रोशनी करती है ,

कवि: देवराज कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

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