" छोटा चूहा "
छोटा चूहा छोटा चूहा,
है मोटा सा छोटा चूहा |
अपनी पैनी दाँतों से,
पूरे ज़ोर और मेहनत से |
कपड़े को कुतरता है,
छुपकर झाँकता है खोलों से |
छोटे है पंजे, मोटा है पेट,
छोटा है घर, पतला सा गेट |
बिल्ली के डर से भागता है,
घर में अपने को शेर समझता है |
कवि : प्रांजुल कुमार ,कक्षा : 9th अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल की है छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और अपनी कविता के माध्यम से लोगो को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं | प्रांजुल पढ़ लिखकर इंजीनियर बनना चाहते हैं |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें