" मनुष्यता की आशा "
बढ़ती इस दुनियां में कुछ ढूँढ रहा हूँ,
लोक मनुष्यता का कुछ आश |
सरल से स्वभाव को,
मन का आज़ाद हो |
दिल का हो स्नेह बहार,
हौशलों से उड़े आसमान से परे,
कुछ कर जाए वे ऐसा |
किसी को भी मालूम न हो,
उस कारनामा का पता न हो |
परिणाम के बारे में ऐसा को तैसा,
पर एक हो इस जैसा |
कवि : विक्रम कुमार कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है | विक्रम कक्षा आठ का विद्यार्थी है और इसने कक्षा चार से कविता लिखनी शुरू की थी | विक्रम को कवितायेँ लिखना और लोगो को शिक्षा की बातें बताना बहुत अच्छा लगता है |
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-11-2018) को "नारी की कथा-व्यथा" (चर्चा अंक-3169) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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