" मन की बात "
चलते चलते कहीं खो न जाऊँ,
भटकते - भटकते कहीं सो जाऊँ |
इस ज़माने का एक अलग दस्तूर है,
तुम्हें याद करके भुला न पाऊँ |
जब मैं ये सोचता हूँ रातों में,
अकेले खो जाता हूँ बातों में |
ऐसी गहरी - गहरी रातों में,
कहीं मैं डूब न जाऊँ |
लोग मुझे कहते हैं पागल सा,
सुनता रहता हूँ इस दुनियाँ की बातें |
मैंने तो समझा लिया अपने मन को,
लेकिन इस दिल की धड़कन को
मैं रोक न पाऊँ |
नाम : विशाल कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता विशाल कुमार की है जो उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और अपना घर रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | विशाल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और कुछ अद्भुद से कार्य करना बहुत पसंद है | पढ़लिखकर एक रेलवे इंजीनियर बनना चाहते हैं |
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