"डर"
दुनियाँ से परे लोगों से डरे,
रहता हूँ मैं पैरों पे खड़े |
डर कर जीना मैंने तो सीखा,
पर वही था सबसे बुरा तरीका |
लोग कहते है की खुल कर जीना चाहिए,
पर कोई नहीं बताता कब जीना चाहिए |
जो डरके जी रहे हैं,
वो लोग नहीं बुरे हैं |
दुनियां से परे लोगों से डरे,
रहता हूँ मैं पैरों पे खड़े |
कवि :देवराज , कक्षा : 7th अपनाघर
कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार | ये बिहार राज्य के प्रवासी मजदूर का बेटा है | अपनी पढाई पूरी करने के लिए अपना घर हॉस्टल में रहते है | इनको कविता लिखने का बहुत शौक है | इन्होने अभी तक बहुत सी अचरज भरी कवितायेँ लिख चुके हैं | कक्षा 7th के छात्र हैं | देवराज क्रिकेट के दीवाने है | विराट कोहली के फैन है | देवरज को डांस करना बहुत पसंद है| हमें उम्मीद है कि आपको देवराज की रचनाएँ पसंद आएँगी
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