"उम्मीदों को मत छोड़ो"
उम्मीदों को मत छोड़ो,
हकीकत को मानो ।
पथ को पहचानो,
उस पथ पर चलना सीखो।
उम्मीदों पर खुद को जीना सीखो।।
बात को मानो तो ,
खुद को पहचानो तो ।
न मिले कोई तो,
अकेले ही चल दो ।
थोडा कष्ट होगा जरूर,
लेकिन पथ को पहचान होगी ।।
चलने का अनुभव होगा,
न भोजन हो तो भी ।
जल से भूख मिटा लेंगे,
हिम्मत करके रस्ते बना लेंगे।
मंजिल पर पहुँच कर दिखा देंगे ।।
जो होगा उसको झेलेंगे,
लेकिन उम्मीदों को न छोड़ेंगे ।
इस जग में भूखे ही सो लेंगे,
नींदों को भी छोड़ देंगे ।
न मिलेगा कंही इंसान तो,
पौधों को ही मित्र बना लेंगे ।
इस धरती को स्वर्ग सा बना देंगे,
अगर उम्मीद को हम अपना लेंगे ।।
कवि: अशोक कुमार "गाँधी", कक्षा 10th, कानपुर, सन 2012
अशोक कुमार, "अपना घर" के पूर्व छात्र है। "आशा ट्रस्ट" कानपुर, के केंद्र पर 2006 से 2015 तक रहकर शिक्षा ग्रहण किये है। अशोक वर्तमान में लखनऊ विश्वविद्यालय से BA LLB की पढाई कर रहे है। अशोक शुरू से वैचारिक रूप से बहुत मज़बूत और आत्मविस्वाश से भरे रहते थे। कवितायें लिखना उनका शगल रहा है। आज उनकी एक पुरानी कविता नजर आ गई, आप सभी से साझा कर रहा हूँ। उम्मीद है आप को उनकी कविता अच्छी लगेगी। अशोक को भी ये कविता पढ़कर अपना बचपना याद आएगा, और शायद फिर से कविता लिखने की इक्षा हो जाय। अशोक को अनंत शुभकामनायें आने वाले भविष्य के लिए। यूँ ही मुस्कराते रहोगे, अपनी कविताओं की तरह उम्मीद जागते रहोगे, इस विस्वाश के साथ ...
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