"गर्मी"
उगता सूरज नज़र आ रहा है ,
धूप की कहर लिए आ रहा है ।
तपती दोपहर कहर के जैसी ,
पसीना आये नहर के जैसी ।
बह -बह कर भरी है ऐसी,
जिसमें नइया डूबी ऐसी की तैसी ।
कड़ी मेहनत से कूलर लगाए ,
तब थोड़ा जाकर राहत पाए ।
कूल -कूल आनंद उठाए ।
कवि: विक्रम कुमार, कक्षा 6th, कानपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें