शनिवार, 4 मार्च 2017

कविता: गर्मी

"गर्मी"

उगता सूरज नज़र आ रहा है ,
धूप की कहर लिए आ रहा है । 
तपती दोपहर कहर के जैसी ,
पसीना आये नहर के जैसी । 
बह -बह कर भरी है ऐसी,
जिसमें नइया डूबी ऐसी की तैसी । 
कड़ी मेहनत से कूलर लगाए ,
तब थोड़ा जाकर राहत पाए ।
 कूल -कूल  आनंद उठाए । 
                   कवि: विक्रम कुमार, कक्षा 6th, कानपुर

कोई टिप्पणी नहीं: