शीर्षक :- धरती उठी थी खिल
भोर का समय था ,
आसमान में चन्द्रमा की रोशनी ।
फैली थी पूरी धरती पर ,
आसमान मे काले बादलो का डेरा ।
चन्द्रमा को घेर रहा था ,
मैं यह देख रहा था बैठा छत पर ।
उसी समय चन्द्रमा पर संकट आया था ,
देख नजारा हवा ने मंद हँसी से मुस्काया ।
देखते ही देखते उसने ऐसा रूख बदला ,
जिससे काले बादल चंदा पर कर सके हमला ।
पूर्व से पश्चिम को चली ,
उत्तर से दक्खिन को चली ।
पवन के झोंको ने सारे बादलो को दिया झोर ,
बेचारे डर कर भागे देख हवा का शोर ।
अब चंदा का संकट गया था टल ,
देख शशि की ज्योति सारी धरती उठी थी खिल ।
भोर का समय था ,
आसमान में चन्द्रमा की रोशनी ।
फैली थी पूरी धरती पर ,
आसमान मे काले बादलो का डेरा ।
चन्द्रमा को घेर रहा था ,
मैं यह देख रहा था बैठा छत पर ।
उसी समय चन्द्रमा पर संकट आया था ,
देख नजारा हवा ने मंद हँसी से मुस्काया ।
देखते ही देखते उसने ऐसा रूख बदला ,
जिससे काले बादल चंदा पर कर सके हमला ।
पूर्व से पश्चिम को चली ,
उत्तर से दक्खिन को चली ।
पवन के झोंको ने सारे बादलो को दिया झोर ,
बेचारे डर कर भागे देख हवा का शोर ।
अब चंदा का संकट गया था टल ,
देख शशि की ज्योति सारी धरती उठी थी खिल ।
नाम :आशीष कुमार
कक्षा :10
अपना घर ,कानपुर
1 टिप्पणी:
Bahut pyari kavita..badhai,
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