हम कुछ कर दिखाएगें
आज भी वहाँ पल रहे हैं....
हजारों नन्हे-मुन्ने छोटे-छोटे बचपन,
जहाँ चल रहीं हैं सर्द हवाएँ....
और झूम रहा है उसमें कण-कण,
आज भी वे ठिठुर रहें हैं....
इन ठंड भरी हवाओं में,
कुछ भट्टों में तो....
कुछ उन्ही घास से बने गाँवो में,
या आज फिर भूल रहें हैं हम....
उन हवाओं और उन गलियों को,
जहाँ गुजरा था हमारा बचपन....
और ईंट की उन भट्ठिओं को,
कोई साथ दे अगर....
इन कठिनाईयों से भरी राहों में,
तो हम कुछ कर दिखायेंगे....
इन वादों और आशाओं में,
नाम :सोनू कुमार
कक्षा :10
अपना घर
1 टिप्पणी:
bahut achchi post hai
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