कविता - जाड़ा
सायंकाल में गिरि हैं ओस ,
जिसके कारण सब हो गए ठोस.....
आया हैं मौसम जाड़े का,
मोटा कपड़ा पहनो भाड़े का......
जाड़े में सभी हो जाओ शार्तक,
वरना लेट जाओगे विस्तर पकड़कर.....
सायंकाल में गिरि हैं ओस,
जिसके कारण सब हो गए ठोस.....
सायंकाल में गिरि हैं ओस ,
जिसके कारण सब हो गए ठोस.....
आया हैं मौसम जाड़े का,
मोटा कपड़ा पहनो भाड़े का......
जाड़े में सभी हो जाओ शार्तक,
वरना लेट जाओगे विस्तर पकड़कर.....
सायंकाल में गिरि हैं ओस,
जिसके कारण सब हो गए ठोस.....
लेखक - ज्ञान कुमार
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर
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