चीटीं
चीटीं होती कितनी हल्की ,
बोझा लेके चलती हिलती-डुलती .....
जाड़े के लिए भोजन करती एकत्र,
इसलिए वह घूमा करती सवत्र....
देख रही है वह एक दाना ,
जो उसको है अपने बच्चों को खिलाना ...
जाड़े में है वह ठंडी सहती ,
अपनी शरीर की सुरक्षा करती.....
चीटीं होती कितनी हल्की ,
बोझा लेके चलती हिलती-डुलती....
लेखक : ज्ञान कुमार
कक्षा : ८
अपना घर
1 टिप्पणी:
सुन्दर रचना!
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