गुरुवार, 19 नवंबर 2009

कविता: बागड़ बिल्ला लेके बल्ला

बागड़ बिल्ला

बागड़ बिल्ला लेके बल्ला,
दिन रात करता रहता हल्ला....
कभी बिल्ली तो कभी चूहे को मारे,
उसकी मार से डरते सभी बेचारे....
एक दिन एक नन्हा चूहा आया,
उसने बिल्ले को बातों में फंसाया....
तब तक सब बिल्ली चूहों ने घेरा,
सबने उसकी बांह पकड़ कर मोड़ा....
मिलकर सबने इतना मारा,
बिल्ला हो गया अधमरा बेचारा....
अब बिल्ले को अक्ल है आई,
सबको कहता बहना - भाई....
अब तो सबकी सेवा करता,
सबके संग में मिलकर रहता....

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

अर्कजेश ने कहा…

बागड बिल्‍ला की कहानी हमने सुनी थी बचपन में । बढिया कविता लिखी इस पर ।

Science Bloggers Association ने कहा…

बहुत सुंदर कविता है, बधाई।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?