बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

कविता:- नई सुबह की नई उमंग

नई सुबह की नई उमंग
सूरज की लालिमा के संग
नई सुबह की नई उमंग
खिलती है कलिया फूलो के संग
चिड़िया चहकी है भर के नई उमंग
हम भी गाये हम भी नाचे
उछले कूदे चिडियों के संग
तभी तो कहते है भईया
मिल - जुलकर रहो हमेशा एक दूजे के संग
सूरज की लालिमा के संग
नई सुबह की नई उमंग
आदित्य कुमार
कक्षा ६, अपना घर


1 टिप्पणी:

Veena ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता आपने लिखी है आदित्य, बहुत खूब