रविवार, 7 दिसंबर 2025

कविता: "किसानों की मेहनत"

"किसानों की मेहनत"
 खेतो में फसले छाई है, 
सबके मन के भाई है ,
चारो ओर सरसो पीले - पीले और हरियाली छाई है ,
कुछ घासों की वजह से, फसले रुक जाती है ,
जैसे ही वो घास हटाते है तो ,
फिर वो फसले अपने लक्ष्य की ओर छा जाती है। 
खेतो में हरे - भरे फसले छाई है चारो ओर छाई है, 
किसानो की मेहनत रंग लाई है,
हरे - भरे फूलों से खेतो में सजाई है, 
किसानों की मेहनत से चारो ओर हरियाली छाई है।    
फसले भी हर दिन संघर्ष करती है ,
छोटे - बड़े परिस्थितयों से लड़ती है ,
  हर दिन नीचे से उठ - उठकर। 
  एक दिन वो अपने लक्ष्य को छू जाती है खेतों में ,
खेतो में फसले छाई है ,
सबके मन  के भाई है ,
चारो ओर हरियाली, ही हरियाली छाई है ,
 खेतो में फसले लहलहाई है। 
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं: