शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

कविता: "मेरे पापा"

"मेरे पापा"
कभी - कभी उम्मीदे तो नहीं होती,
 पर फिर भी उम्मीद खोऐ नहीं ,
आँखे से आसु तो आता है ,
मेरे पापा कभी रोते नहीं। 
शरीर तो अक्सर हार मान लेता है काम करते - करते ,
पापा को भी तो घर चालना है,
शायद इसलिए पापा कभी पीछे नहीं होते है,
मेरे पापा कभी रोते नहीं। 
दिन के कमाए हुए पैसे कम होते है,
शायद इस वजह से रात को भी काम करने से पीछे हटते नहीं, 
हर बार तो आँशु आता है, पर पापा कभी रोते नहीं ,
शरीर रुट जाता है ,
मन हार मान लेता है ,
पर फिर भी कही पीछे हटते नहीं ,
मेरे पापा कही रोते नहीं। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 

 

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