शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

कविता; "मुस्कुराती दुनिया"

"मुस्कुराती दुनिया"
 ये हस्ती हम्मारी जमीन, सुबह का का उगता सूरज,
खिलखिलाता सा आसमाँ ,
दिश बदलती हवाए चलती रहते है। 
ऐसा लगता है किसी का सन्देश लाता है ये हवाए ,
सुरज की गर्मी से येआसमाँ रूठा - रूठा सा लगता है,  
न किसी के चेहरे पर कोई हसी है, 
क्या हो गया है आसमाँ को एक बार तो मुस्कुरा दे
तेरे मुस्कुराने से फूलो को खिला दे। 
वो उगता सूरज भी ढल जाएगा,
हम्मन आरी हस्ती जमीन। 
कवि: अजय II, कक्षा; 6th,
अपना घर। 
 

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