सोमवार, 12 अगस्त 2024

कविता :"पहरा "

"पहरा "
ख्वाबों पर पहरा ,
पर हर कदम कठिनाई से चला | 
किसी तरह उस ओर तक पहुँचा ,
जंहा कब्र का निशान मिला | 
जिज्ञासा हो रहा था मुझमे ,
पर हमारे लिए वक्त काम था | 
ख्वाबों पर पहरा ,
चांदनी रात की शाम थी | 
सोचा था कुछ अनोखा ,
पर यह बात दिल को दर्द देता था | 
ख्वाबो पर पहरा ,
जैसे सपनो का मर जाना | 
अब बस सुकून के लम्हे गुजरना ,
पर ख्वाबो पर पहरा | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा 10th 
अपना घर 

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